रविवार, 29 मई 2011

चाहत

किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने ,  ये जहा पा लिया !
फूल न मिले तो क्या, काटो का शहरा बना लिया !

हर आंधी हर तूफान से लड्रते,अंधेरो मे प्रकाश को खोजते , जीवन मे योही बढते,
साबन  न आये तो क्या पतझर संग गुनगुना लिया !

हर एक पल, हर एक हसी को याद करते, उठते, बैठते, सोते, जागते, खवाब देखते,

सच न हुये तो क्या, जूठे इन खवाबो मे ये जहा पा् लिया !

किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने ,  ये जहा पा लिया !

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