शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

आखिर मुरीद क्या हैं

जिंदगी ही सनम मुझ से पूछ रही है,
तेरे आगोश में दर्द कितना है।

क्या सुनाऊ सहमे इस दिल का आलम,
मानो जिंदगी ही मुझसे रूठ गई है।

कभी मनाया करते थे हर दिन ईद, लोहरी, दिवाली,
आज तो पतझड़ भी मुझसे पूछ रही है ,
बता मेरे सनम साथ और कितनी दूर चलना है।

वफाये तेरी ही तो एक साथ है,
मगर क्या पता कब तू भी पूछ दे,
साये में मेरी कब तक छिपाएगा सर ये फकीर,
आखिर मुरीद क्या हैं तेरी तू खुद ही बोल दे!

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

नेता जी

सलाहकार: नेता जी, नेता जी, जनता बड़ी परेशान हैं,
                  बहार धरना दिए बैठी हैं मनो लड़ने को तैयार हैं।

नेता जी : जनता क्या हैं, ये किस चिड़िया का नाम हैं?
              मुझे मत बताओ मेरे सर चकराते हैं, 
              कही धरना, कही प्रदर्शन पे बैठ जाते हैं, 
              फिर बिजली पाने शंकट का मुहर लगते हैं, 
              मेरी अपनी जिन्दगी भी हैं कुछ, 
              या इनपे लुटाऊ सारी,
              बात बात पे मर मिटने को तैयार हो जाते हैं,
              बड़े ही मुद्तो बाद,
              पाच साल के लिए ही मिल पाती हैं साली (कुर्सी )
              जनता के बिच पिस कर इसका मज़ा भी नहीं उठा पाते हैं।

                                                                                 
                                                                             

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

चार लाइन दोस्तों के नाम


रूत बदल गए इंतजार में तेरी, 
आई न तुझे याद मेरी,
क्या लिखू मैं, ऐ पगामे मुहब्बत, 
जाती ही नहीं याद तेरी.

सोमवार, 23 जुलाई 2012

अल्फाज तो बहुत हैं


अल्फाज तो बहुत हैं मोहब्बत जताने के लिए, 
मगर वो उल्फत कहाँ से लाउ सनम का दिल चुराने के लिए. 
आहे हर वक्त रहती हैं सासों में दबी, 
कभी आये वो घूँघट में हमें आपना बनाने के लिए.







मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

यूँ न नज़रे झुकाव

यूँ न नज़रे झुकाव, की तुम्हे देकने का दिल करता है।
सागर की लहरों को तान बना, आज फिर गुनगुनाने का दिल करता है।
वफाये मोहब्बत की सरारत ही सही, आज हद गुजर जाने का दिल करता है।

यूँ न नज़रे झुकाव...................
   

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

तेरे दर से जब मुहबत का जनाजा निकला

तेरे दर से जब मुहब्बत का जनाजा निकला,
दुल्हन परी दूल्हा शहजादा था,
महफिल में रौनक, शहनाई में तान था,
न आह आई, न कसक ही गई,
मद मस्त उस समां में एक चेहरा तनहा अकेला था,
हर मुखरा अपसरा, दिल मिट्टी का खिलौना था,
आ रही हर यादों में बस एक नाम तेरा था,
तेरे दर से जब मुहबत का जनाजा निकला.......





शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

वो ओठ

बहुत कुछ बोल रहे थे वो ओठ,
गुल का, गुलशन का इबादत कर रहें थे वो ओठ|
अनजानी, अन्दाखी चाहत का,
हर कलि का, हर चमन का,
हलकी हलकी मीठी रस की फुहार का एहसास थे वो ओठ|
दूध धूलि सी छुई मुई सी,
योवन की अंगराई थे वो ओठ|
कोमल, नजाकत, शरारत से भरी,
छिपी  पड़ी थी जिसमे मस्ती सारी,
मुस्कराहट से न जाने क्या क्या राग सुना रहें थे  वो ओठ|
मराठी शबाब में नहाये एक राज्यस्थानी की पहचान थे वो ओठ|