गुरुवार, 4 अगस्त 2011

वो चार दिन

सावन की पहली बूंदों ने गुनगुनाने की चाहत जगाइ थी
चढ़ते दिन और ढलती शामो ने भी नए उमंग जगाये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

सूर्य की तपिस मैं ठंडक चाँद की चांदनी में गरमाहट,
हर सास हर धड़कन में किसी मिलने को आवाज उठाये थे,
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

हर पल बदले अंदाज,
सासों को साँसों से मिलने का इंतजार,
हर फूल हर कलियों में किसी का चेहरा नजर आये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

भूले न भुलेगे कभी इन आँखों में ख़ुशी का एहसास
मंद मंद चलती साँसों कोमल मखमली आँचल का एहसास
न भुलेगे वो चार दिन जो नए जीवन का एहसास दिलाये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|