शनिवार, 17 दिसंबर 2011

तेरे दर से जब मुहबत का जनाजा निकला

तेरे दर से जब मुहब्बत का जनाजा निकला,
दुल्हन परी दूल्हा शहजादा था,
महफिल में रौनक, शहनाई में तान था,
न आह आई, न कसक ही गई,
मद मस्त उस समां में एक चेहरा तनहा अकेला था,
हर मुखरा अपसरा, दिल मिट्टी का खिलौना था,
आ रही हर यादों में बस एक नाम तेरा था,
तेरे दर से जब मुहबत का जनाजा निकला.......





शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

वो ओठ

बहुत कुछ बोल रहे थे वो ओठ,
गुल का, गुलशन का इबादत कर रहें थे वो ओठ|
अनजानी, अन्दाखी चाहत का,
हर कलि का, हर चमन का,
हलकी हलकी मीठी रस की फुहार का एहसास थे वो ओठ|
दूध धूलि सी छुई मुई सी,
योवन की अंगराई थे वो ओठ|
कोमल, नजाकत, शरारत से भरी,
छिपी  पड़ी थी जिसमे मस्ती सारी,
मुस्कराहट से न जाने क्या क्या राग सुना रहें थे  वो ओठ|
मराठी शबाब में नहाये एक राज्यस्थानी की पहचान थे वो ओठ|

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

जिन्दगी की कमी

फटेहाल इस जिन्दगी में , बस इन गमो की कमी थी,
लहू बनके जो निकले उन आसुओ की कमी थी,

कमी थी उन यादो की जिनके बिना जिन्दगी मदहोश हो चली थी,
ख़ामोशी से जो नया राह दिलाये,
बस एक  ऐसे एहसास की कमी थी,
फटेहाल इस जिन्दगी में, ......

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

वो चार दिन

सावन की पहली बूंदों ने गुनगुनाने की चाहत जगाइ थी
चढ़ते दिन और ढलती शामो ने भी नए उमंग जगाये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

सूर्य की तपिस मैं ठंडक चाँद की चांदनी में गरमाहट,
हर सास हर धड़कन में किसी मिलने को आवाज उठाये थे,
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

हर पल बदले अंदाज,
सासों को साँसों से मिलने का इंतजार,
हर फूल हर कलियों में किसी का चेहरा नजर आये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

भूले न भुलेगे कभी इन आँखों में ख़ुशी का एहसास
मंद मंद चलती साँसों कोमल मखमली आँचल का एहसास
न भुलेगे वो चार दिन जो नए जीवन का एहसास दिलाये थे
वो चार दिन न जाने क्या क्या एहसास दिलाये थे|

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक लड़की

आज मैंने एक लड़की को देखा हैं, 
आँचल में लिपटी शर्मायी सी,
ख्वाबो को बुनती थोड़ी इठलाई सी,
चंचल अदाए, शराबी नैन,
आँखे मिचे खड़ी थी बेचेन,
साबन के पहली फुहार,
हर धड़कन की पुकार,
यौवन भी कर रहा था,
जिसपे अहंकार,
बहो में सिमटा था  जिसके ये संसार,
उसको भी था किसी हमसफ़र का इंतजार|

बुधवार, 1 जून 2011

पद यात्रा

यात्रा बहुत सी होती हैं|आजकल के इस भाग दौर भरे जीवन में व्यक्ति अपने जीवन के कुछ फुरसत भरे लम्हो को यादगार बनाने की चाह में और मानसिक शांति के लिए इन्सान ने यात्रा एक बहुत ही अच्छा जरिया ख़ोज निकला हैं | जहाँ एक तरफ ये यात्रा फुर्सत और मानसिक शांति का एक बहुत ही उत्तम साधन हैं वही दूसरी तरफ ये व्यस्त होने आउट अशांति की वजह  भी|  अरे .... अरे.... अरे.... भाई आप क्यों घबरा गये| मैं आपकी बात नहीं कर रहा | में तो उनकी बात कर रहा हूँ  जिनके लिए ये रोजी रोटी हैं| हाँ सही पहचाना आपने में बात कर रहा हूँ  येर मददगारो का या अधिक आदरणीय शब्दों में यात्रा दलाल भी  कह सकते हैं| ये वैसे व्यक्ति होते है जो आपके यात्रा की पूरी व्यवस्ता करते होते है जो आपके यात्रा की पूरी व्यवस्ता करते है और बतौर मेहेनात्नमा आपसे दो चार पैसे लेकर खुश हो जाते है. ये मददगार लोग यात्राओ को भी आपकी जरुरत की मुताबित वर्गीकरण करके अलग अलग  श्रेणियो में विभाजित कर सकते देते है उदाहरण के तोर पर खतरों से भरा यात्रा, धार्मिक यात्रा, पर्वतिये यात्रा, चिड़िया देखने की यात्रा, जानकर देखने की यात्रा, इत्यादि इनमे खतरों से भरा यात्रा या शुद्ध-शुद्ध शब्दों में Advanture  Tour कहते है, मुझे सबस ज्यादा कुभाती है| अरे भाई यात्रा चाहे जैसी भी हो लेकिन इसका नामकरण ही कुछ इस प्रकार से किया गया है. कि यानायास ही इसकी तरफ दिल मचल उठता है. 

खेर छोरिये इन बातो में आज एक अनोखे यात्रा कि बात करने जा रहा हु. मेरे घर से कार्यस्थल तक कि यात्रा. एक दिन में कार्यस्थल से घर कि और चला, यू तो ये रोज़ ही करता आया हु| और करता ही रहूँगा.
अचानक ही मेरे मन में एक खायाल  आया कि क्यों न आज में अपने चरण के चरण स्पर्स किये और बोला चल भैये अब चल पर. ज्यो-ज्यो में पग आगे बढता मेरी लिए किसी यात्रा मददगार द्वारा प्रदान किये गए किसी खतरों से भरा यात्रा  से कम नहीं था| और साथ ही साथ में दर्शन यात्रा का भी आनंद ले रहा था अरे भाई दर्शन यात्रा से मेरा तात्पर्य है की मैं आँख बंद करके तो नै चल रहा था न |प्रक्रति की अनुपम छठा (लडकियो) का दर्शन भी कर रहा था | तो हो गयी न ये दर्शन यात्रा| जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता गया मेरी ये खतरों से भरा यात्रा और भी आश्चर्यजनक होती चली गयी |मेरी नजर एक एसे इन्शान पर पड़ी जो इन्शान कम कंकाल ज्यादा लग रहा था |लग रहा था मनो हवा का एक हल्का झोका भी उडा के जाए| एक साइकल के साथ खड़ा था | उसकी साइकल को देखकर मेरा सीर भारत सरकार की ओर आदर से झुक गया| और मन ही मन सोचने लगा की लोग कितना गलत सोचते हैं सरकर के विषय में देखो कैसे हमारी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखने के लिए गली नुकर पे अजायब घर (Museum) बनवा दिया हैं| तभी मेरे कामो में आवाज आई `अगर आपका पेट ठीक नहीं हैं, वायु दोष रहता हैं, मोटापे से परेसान हैं, घुटनों में दर्द हैं तो सिर्फ ५रुपये और जीवन वहार का आराम | ' तब मैं आत्ममंथन से बहार आया और पाया के साइकल पर एक सूटकेस रखी है और कुछ बिजली के उपकरण भी| जो आवाज मैं सुन रहा था वो भी इसी की थी | अब तो मेरा सीर और व्ही झुक गया लेकिन सरकार की तरफ नहीं इन जनाब की तरफ और मेरा मन इन्हे शत शत प्रणाम करने को कर रहा था| और करे भी क्यों न बाबा रामदाव क्या कर सकते हैं दो चार लोगो को योग सिखाकर | धन्य हो इन साइकल वाले बाबा की जिन्होंने न जाने कैसी कैसो बीमारियों को मात्र ५रुपये में ही ठीक कर देगे| 

मैंने अपने यात्रा के पहले ही दर्शन ने इतना आन्नदविभोर हो गया की मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब अपनी यात्रा समाप्त केके घर पहुच गया|

मंगलवार, 31 मई 2011

बेवफाई

बेवफाई से नहा वफाई का चोला पहन रो रहा हूँ सून शहनायाई
ओ हरजाई मत कर बेवफाई आज तुने मुझे नही मोहबत को बदनाम किया
कौन था वो चाँद कैसी थी चांदनी जो चाँद चांदनी से दूर हो रहा
सुमन के सुगंध से जुल्शन आबाद हो रहा
देख आज कही मोहबत बदनाम हो रहा

रविवार, 29 मई 2011

चाहत

किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने ,  ये जहा पा लिया !
फूल न मिले तो क्या, काटो का शहरा बना लिया !

हर आंधी हर तूफान से लड्रते,अंधेरो मे प्रकाश को खोजते , जीवन मे योही बढते,
साबन  न आये तो क्या पतझर संग गुनगुना लिया !

हर एक पल, हर एक हसी को याद करते, उठते, बैठते, सोते, जागते, खवाब देखते,

सच न हुये तो क्या, जूठे इन खवाबो मे ये जहा पा् लिया !

किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने ,  ये जहा पा लिया !