दुल्हन परी दूल्हा शहजादा था,
महफिल में रौनक, शहनाई में तान था,
न आह आई, न कसक ही गई,
मद मस्त उस समां में एक चेहरा तनहा अकेला था,
हर मुखरा अपसरा, दिल मिट्टी का खिलौना था,
आ रही हर यादों में बस एक नाम तेरा था,
तेरे दर से जब मुहबत का जनाजा निकला.......
किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने , ये जहा पा लिया !
फूल न मिले तो क्या, काटो का शहरा बना लिया !
हर आंधी हर तूफान से लड्रते,अंधेरो मे प्रकाश को खोजते , जीवन मे योही बढते,
साबन न आये तो क्या पतझर संग गुनगुना लिया !
हर एक पल, हर एक हसी को याद करते, उठते, बैठते, सोते, जागते, खवाब देखते,
सच न हुये तो क्या, जूठे इन खवाबो मे ये जहा पा् लिया !
किसी को अपना बनाने की चाह मे मैने , ये जहा पा लिया !