शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

वो ओठ

बहुत कुछ बोल रहे थे वो ओठ,
गुल का, गुलशन का इबादत कर रहें थे वो ओठ|
अनजानी, अन्दाखी चाहत का,
हर कलि का, हर चमन का,
हलकी हलकी मीठी रस की फुहार का एहसास थे वो ओठ|
दूध धूलि सी छुई मुई सी,
योवन की अंगराई थे वो ओठ|
कोमल, नजाकत, शरारत से भरी,
छिपी  पड़ी थी जिसमे मस्ती सारी,
मुस्कराहट से न जाने क्या क्या राग सुना रहें थे  वो ओठ|
मराठी शबाब में नहाये एक राज्यस्थानी की पहचान थे वो ओठ|